Saturday, 30 September 2017

जानिये उस् शख्स्स के बारे मे जो न होता तो शायद भारत गुलाम न बनता

हमारे यहां गद्दारों के लिए दो ही नाम होते हैं. पहला, जयचंद. दूसरा, मीर जाफर. मीर जाफर को गद्दार बनाने वाले . रॉबर्ट क्लाइव. पैदा होने की तारीख 29 सितम्बर, 1725.  ये इंसान न होता, तो शायद भारत को 200 सालों तक अंग्रेजों की गुलामी न करनी पड़ती. 

वो क्लाइव ही था, जिसने भारत में अंग्रेजों की किस्मत लिखी. बेहद क्रूर. पत्थर दिल. अत्याचारी. अफीम की लत थी उसे. दिमाग ठिकाने पर नहीं रहता था. तुनकमिजाज था. कई इतिहासकार उसे ‘साइकोपैथ’ भी कहते हैं. माने, मनोरोगी. इसी क्लाइव पर 1935 में एक फिल्म बनी. क्लाइव ऑफ इंडिया.

एकदम हीरो टाइप. इसमें क्लाइव की रोमांटिक कहानी थी. ऐसे ही जैसे ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के किसी राज मल्होत्रा की होती है. दिल लुटाने वाला. टूटकर प्यार करने वाला. एक दोस्त के गले में लॉकेट था. लॉकेट में एक लड़की की तस्वीर थी. फोटो देखकर ही क्लाइव को उससे मुहब्बत हो गई. उसने बिना मिले ही शादी के लिए प्रपोज कर दिया. चिट्ठी लिखकर लड़की से कहा, भारत चली आओ. तब इंग्लैंड से भारत आने में सालभर का वक्त लगता था. लड़की आ गई. दोनों ने शादी कर ली.

पलासी की लड़ाई के दौरान मीर जाफर से मुलाकात करता रॉबर्ट क्लाइव 

हिंदुस्तान के लिए शाप, लेकिन अंग्रेजों के लिए वरदान था क्लाइव
साल 1744. क्लाइव पहली बार इंग्लैंड से मुंबई के लिए निकला. ईस्ट इंडिया कंपनी का एजेंट बनकर. रास्ते में जहाज खराब हो गया. ठीक होते-होते नौ महीने लग गए. इस बीच क्लाइव ने पुर्तगाली भाषा सीख ली. नियति थी. आगे बड़ी काम आई उसके. 1707 में मुगल बादशाह औरंगजेब मर चुका था. साम्राज्य कमजोर हो गया था. सूबेदार ताकतवर हो गए थे. फ्रांस, पुर्तगाल, ब्रिटेन सबकी नजर थी भारत पर. फ्रांस मजबूत था. मद्रास पर अंग्रेजों का प्रभाव था. यहां फ्रेंच सेना ने अंग्रेजों पर हमला किया. अंग्रेज हार गए. लेकिन क्लाइव ने बड़ी बहादुरी दिखाई. झुकने से इनकार कर दिया. बड़ी चालाकी से वेश बदलकर भाग गया. यहीं से क्लाइव की किस्मत का ताला खुला. वो सीनियर्स की नजर में आया. फ्रेंच फोर्सेस के साथ लड़ते हुए उसने बहुत बहादुरी दिखाई. इसी साहस के दम पर ब्रिटिश सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल बन गया.
‘क्लाइव ऑफ इंडिया’ फिल्म का एक दृश्य.

अंग्रेजी की डिक्शनरी में बस अंग्रेजी के शब्द नहीं होते. कई भाषाओं के होते हैं. हिंदी के भी. ‘लूट’ हिंदुस्तानी जुबां का वो पहला शब्द था, जिसने अंग्रेजी में एंट्री ली. ऑक्सफर्ड डिक्शनरी के मुताबिक, 18वीं सदी के आखिरी सालों से पहले ये शब्द केवल उत्तरी भारत के मैदानी हिस्सों में बोला-सुना जाता था. फिर अंग्रेज इसका इस्तेमाल करने लगे. क्यों न करते? वो भारत में ये ही तो कर रहे थे.

क्लाइव का ‘लकी चार्म’ साबित हुआ बंगाल
क्लाइव को सबसे बड़ी पहचान मिली बंगाल में. 1756 में अलीवर्दी खां के बाद सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब बने. नवाब की फौज ने कासिमबाजार पर हमला किया और कलकत्ते के किले पर अधिकार कर दिया. कलकत्ता की ये हार अंग्रेजों की पीठ तोड़ देती. फिर अंग्रेजों की ओर से कलकत्ता पर दोबारा कब्जा करने के लिए क्लाइव को भेजा गया. क्लाइव को सफलता मिली.

Victoria Memorial Hall: Lord Clive, initiator of British rule in India. (marble

भारत को अपनी कॉलोनी बनाने के लिए फ्रांस, पुर्तगाल और ब्रिटेन आपस में संघर्ष कर रहे थे. आखिरकार ब्रिटेन को जीत मिली. इसमें क्लाइव की भूमिका सबसे अहम थी.

मीर जाफर की गद्दारी
नवाब सिराजुद्दौला को उनके ही वफादारों ने धोखा दिया. जफर अली खान उर्फ मीर जफर उनका सेनापति था. सिपहसालार. ये ही मीर जाफर गद्दारों का मुखिया भी था. उसे नवाब की गद्दी चाहिए थी. मीर जाफर और क्लाइव के बीच समझौता हुआ. करार हुआ. मीर जाफर सिराजुद्दौला को हरवा दे. बदले में बिहार, बंगाल और ओडिशा (तत्कालीन उड़ीसा) की नवाबी ले ले. मीर जाफर अंग्रेजों को हुए नुकसान की भरपाई करने को भी तैयार हो गया.

पलासी का युद्ध 21 जून, 1757. मॉनसून जोरों पर था. क्लाइव और नवाब सिराजुद्दौला की सेनाएं आमने-सामने थीं. क्लाइव के साथ थे 1,100 यूरोपियन और 2,100 भारतीय सिपाहियों की फौज. नवाब के पास 18,000 घुड़सवार और 50,000 पैदल सेना की भारी-भरकम फौज. पलड़ा नवाब का भारी लग रहा था. 23 जून को असली लड़ाई हुई. नवाब की तोपों में भरा जाने वाला बारूद बारिश में खराब हो गया. उधर मीर जाफर नवाब की फौज के एक बड़े हिस्से को जंग के मैदान से दूर ले गया. क्लाइव जीता नहीं, नवाब हार गए. क्लाइव की फौज के कुल 22 सिपाही काम आए. सिराजुद्दौला ने भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़े गए. बाद में उन्हें मार डाला गया. इस लड़ाई ने हिंदुस्तान की तकदीर बदल दी. पलासी की लड़ाई अंग्रेजों ने बहादुरी से नहीं जीती थी. धोखेबाजी, साजिश, सौदेबाजी, रिश्वतखोरी. ये सारी चीजें थीं अंग्रेजों की जीत के पीछे. क्लाइव इसका मास्टरमाइद् था

बंगाल की जीत अंग्रेजों के लिए मील का पत्थर साबित हुई. इस जीत के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी काल सितारा बुलंद ही होता रहा. इसका आर्किटेक्ट था क्लाइव.

पलासी की जीत से अंग्रेजों को मिला अपरहैंड
क्लाइव की इस जीत ने बंगाल में अंग्रेजों को सबसे ऊपर कर दिया. हालांकि, उनकी जगह अभी पुख्ता नहीं हुई थी. बेताज बादशाह बनने के लिए अंग्रेजों को कुछ साल रुकना पड़ा. 1764 में हुई बक्सर की लड़ाई के बाद अंग्रेजों की पतंग कोई काट नहीं पाया. ये सारा श्रेय क्लाइव को ही जाता है. वो क्लाइव ही था, जिसने कमजोर शासकों की पीठ पर सवार होकर कंपनी के पैर जमाने की रणनीति बनाई थी. इस रणनीति को अंग्रेजों ने खूब कैश किया. बाद में इसी क्लाइव ने अंग्रेजों के लिए इलाहाबाद की संधि करवाने का मुकाम भी हासिल किया. संधि क्या थी, जबर्दस्ती ही थी. शर्तें क्लाइव ने तय की थी. मजबूर शाह आलम ने बस दस्तखत किए थे. 

तत्कालीन इतिहास सैयद गुलाम हुसैन खान ने इस पर लिखा:
जितनी देर एक गधे को बेचने में लगती है, उससे भी कम वक्त में इतना अहम समझौता हो गया.
पलासी की लड़ाई अंग्रेजों ने नहीं जीती. अगर मक्कारी को कूटनीति का नाम दिया जाए, तो समझ लीजिए कि बस इसी सहारे क्लाइव ने पलासी में जीत हासिल की.

ब्रिटेन से भी अमीर था तब बंगाल, उसे लूटकर क्लाइव ने भी खूब दौलत कमाई क्लाइव ने भारत को खूब कंगाल किया. सबसे ज्यादा तबाह किया बंगाल को. उस दौर में बंगाल ब्रिटेन से ज्यादा अमीर था. इसे दुहकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने खूब मुनाफा कमाया. क्लाइव भी घाटे में नहीं रहा. उसने भी खूब दौलत बनाई. क्लाइव जब वापस ब्रिटेन लौटा, तो खजाना लेकर लौटा. उसने दो करोड़ से ज्यादा की संपत्ति बनाई. आज के दौर का लगभग दो अरब रुपया समझ लीजिए. ये भारत की ही लूट थी, जिसके सहारे क्लाइव उस समय पूरे यूरोप का ऐसा सबसे अमीर इंसान बन गया था, जिसने खुद संपत्ति कमाई हो. पलासी की लड़ाई के बाद उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के खजाने में करीब 22 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए. मौजूदा रुपयों में समझें, तो करीब 22 अरब रुपया.

रॉबर्ट क्लाइव की जिंदगी में बहुत विरोधाभास है. एक तरफ वो हद रोमांटिक और जान लुटाने वाला प्रेमी है, तो वहीं दूसरी ओर बेहद क्रूर और ठंडा इंसान.

नाव में लादकर ले गया था बंगाल का पैसा क्लाइव की हर कहानी क्रूर है. दिल तार-तार कर देने वाली. मालूम है, बंगाल से लूटी दौलत को वो कैसे ले गया था? नाव पर. नवाब के महल के खजाने को 100 नावों पर लादा गया. गंगा के रास्ते इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता मुख्यालय ‘फोर्ट विलियम’ ले जाया गया. आधुनिक इतिहासकार क्लाइव की बहुत छीछालेदर करते हैं. उसके किए अत्याचारों के लिए उसकी बहुत आलोचना होती है. उसने बहुत अत्याचार किए. बुनकरों को गुलाम जैसी हालत पर ला छोड़ा. ऊंचे टैक्स लगाए. कृषि की ऐसी नीतियां तय कीं कि किसान बर्बाद हो गए. इन्हीं नीतियों के कारण 1770 में बंगाल के अंदर भयंकर अकाल आया. मानते हैं कि इस अकाल में 1 करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए. बिहार से बंगाल तक फैला था ये अकाल. तत्कालीन गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स ने 1772 में रिपोर्ट जमा की. इसके मुताबिक अकाल के कारण प्रभावित इलाकों की एक तिहाई आबादी भूख से तड़पकर मर गई. इन हत्याओं की सबसे बड़ी जिम्मेदारी क्लाइव के ही सिर है.
रॉबर्ट क्लाइव की मौत के बारे में कई कहानियां हैं. कहते हैं, उसने बीमारी से उकताकर आत्महत्या की.

जितना क्रूर खुद था, उतना ही क्रूर हुआ क्लाइव का अंत
भारत से रिटायर होने के बाद क्लाइव ब्रिटिश संसद पहुंचा. उसने ब्रिटिश साम्राज्य के लिए जो किया, उसके एवज में. लेकिन उसकी कमाई अकूत दौलत उसे भारी पड़ गई. संसद के बाकी सहकर्मी उससे जलते थे. भ्रष्टाचार के कारण उसे खूब खरी-खोटी सुनाई जाती थी. 1774 में उसने आत्महत्या कर ली. एक छोटे चाकू से उसने खुद अपना गला काट लिया. 22 नवंबर की वो रात बहुत ठंडी थी. उसे मॉर्टन से गांव की एक गुमनाम सी कब्र में दफना दिया गया. क्लाइव ने हिंदुस्तानियों पर बहुत जुल्म किया. वक्त ने उसके साथ नृशंसता दिखाई. सजा फिर भी मुकम्मल नहीं मिली उसे. इतनी सी सजा उसके अपराध के बराबर नहीं.

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