भोपाल। मध्यप्रदेश के बैतूल से आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलाने जा रहे है जिसने त्याग की एक मिसाल कायम की है। इस शख्सका नाम सरकार की ओर से पद्म पुरस्कार दिए जाने वालो की लिस्ट में शामिल था 26 साल से यह शख्स आदिवासियों आदिवासियों के बीच रह रहा है और आदिवासियों के हित में ही काम कर रहा है। जब पुलिस ने संदिग्ध जान उस शख्स से पूछताछ की तो पुलिस की आँखे फटी रह गई।
पूछताछ में पुलिस को पता चला कि यह शख्स और कोई नही बल्कि दिल्ली IIT के पूर्व प्रोफेसर आलोक सागर है।अलोक सागर रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को भी पढ़ा चुके है।
इन्होंने लग्जरी लाइफस्टाइल, व्हाइट कॉलर जॉब, चमचमाती गाड़ी, बंगला और सुकून की जिंदगी, सब छोड़कर आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने को प्राथमिकता दी।
20 जनवरी 1950 को दिल्ली में जन्मे आलोक ने 1977 में अमेरिका के हृयूस्टन यूनिवर्सिटी टेक्सास से शोध डिग्री ली।
टेक्सास यूनिवर्सिटी से डेंटल ब्रांच में पोस्ट डाक्टरेट और समाजशास्त्र विभाग, डलहौजी यूनिवर्सिटी, कनाडा में फैलोशिप भी की. आईआईटी दिल्ली में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग करने के साथ ही विदेश में पढ़ाई कर डिग्रियां हासिल की। इसके बाद आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर बन गए।
आलोक सागर ने पद्म पुरूस्कार लेने से भी मना कर दिया दिया था जब उनसे इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि ‘मैं एक आम इंसान हूं। पुरस्कार विशेष पहचान लाते हैं, जो एक-दूसरे के बीच गैर बराबरी पैदा करते हैं। मैं अपनी पहचान खोना नहीं चाहता। मैं कोई पुरस्कार नहीं लूंगा। जैसे जातिगत गैर बराबरी है, ठीक वैसे ही पुरस्कार छोटे-बड़े की भेद पैदा करते हैं।
जब सागरजी से पूछा गया कि, फिर प्रधानमंत्री भी क्यों कोई बने? उन्होंने जवाब दिया,’पीएम एक पद है, भूमिका है। यह पुरस्कार नहीं है। पदम पुरस्कार एक ठप्पा है, मुकुट है, जो मुझे आम पब्लिक से अलग कर देगा।’ आलोक सागर ने 1990 से अपनी तमाम डिग्रियां संदूक में बंदकर रख दी थीं। बैतूल जिले में वे सालों से आदिवासियों के साथ सादगी भरा जीवन बीता रहे हैं। वे आदिवासियों के सामाजिक, आर्थिक और अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं। इसके अलावा गांव में फलदार पौधे लगाते हैं।
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