भारत में भुखमरी के पक्ष और विपक्ष में तमाम तर्क पेश किये जाते हैं। लेकिन सच ये है कि कहीं न कहीं सप्लाई चेन में खामी की वजह से इस तरह की दिक्कतें आ रही हैं।
दीपावली से तीन दिन पहले 11 वर्ष की मासूम संतोषी कुमारी की मौत की खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। संतोषी की मां कोयली देवी ने बताया कि 28 सितंबर की दोपहर संतोषी ने पेट दर्द होने की शिकायत की। गांव के वैद्य ने कहा कि इसको भूख लगी है। खाना खिला दो, ठीक हो जाएगी। मेरे घर में चावल का एक दाना नहीं था। इधर संतोषी भी भात-भात कहकर रोने लगी थी। उसका हाथ-पैर अकड़ने लगा। शाम हुई तो मैंने घर में रखी चायपत्ती और नमक मिलाकर चाय बनायी। संतोषी को पिलाने की कोशिश की। लेकिन, वह भूख से छटपटा रही थी। देखते ही देखते उसने दम तोड़ दिया। लेकिन ये दास्तां किसी एक कोयली देवी या संतोषी की नहीं है, बल्कि देश की करीब 19 करोड़ की आबादी कुपोषित है। सरल शब्दों में कहें तो ये वो लोग हैं जो या तो भूखे पेट सोते हैं या उनके भोजन में पोषक तत्वों की कमी होती है। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि देश की वो आबादी जो दो जून के भोजन से महरूम रहती है
बांग्लादेश-नेपाल से पीछे है भारत
दुनियाभर के विकासशील देशों में भुखमरी की समस्या पर इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में भारत 119 देशों में से 100वें पायदान पर है। बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों से भी भारत पीछे है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बाल कुपोषण से स्थिति और बिगड़ी है। दरअसल हंगर इंडेक्स दिखाता है कि लोगों को खाने की चीज़ें कैसी और कितनी मिलती हैं। एक ओर जहां भारत भूख की गंभीर समस्या से जूझ रहा है, वहीं दूसरी और देश में बड़े पैमाने पर खाने की बर्बादी की जाती है।
440 अरब डॉलर के दूध, फल व सब्जियों की बर्बादी
ऐसोचैम और एमआरएसएस इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक देश में सालाना उत्पादित होने वाले दूध, फल व सब्जियों में से तकरीबन आधा बर्बाद हो जाता है। इस बर्बादी से हर साल देश को करीब साढ़े चार सौ अरब डॉलर का नुकसान होता है। देश में कोल्ड स्टोरेज तकनीकों और उसके संचालन के लिए प्रशिक्षित स्टाफ की कमी इस बर्बादी की मुख्य वजह है।
क्या है भुखमरी ?
विटामिन, पोषक तत्वों और ऊर्जा की गंभीर कमी को भुखमरी कहते हैं। यह कुपोषण का सबसे चरम रूप है। अधिक समय तक भूखे रहने के कारण शरीर के कुछ अंग स्थायी रूप से नष्ट हो सकते हैं। अंततः मृत्यु भी हो सकती है। अपक्षय शब्द भुखमरी के लक्षणों और प्रभाव की ओर संकेत करता है।
विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार, विश्व के संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए भूख स्वयं में ही एक गंभीर समस्या है। डब्लूएचओ (WHO) यह भी कहता है कि अब तक शिशु मृत्यु के कुल में से आधे मामलों के लिए कुपोषण ही उत्तरदायी है।एफएओ (FAO) के अनुसार, वर्तमान में 1 बिलियन से भी ज्यादा लोग, या इस ग्रह पर प्रति 6 में से एक व्यक्ति, भुखमरी से प्रभावित हैं।
बड़ी वजहेंदेश में तकरीबन 6,300 कोल्ड स्टोरेज इकाइयां हैं। इनकी कुल क्षमता 3.01 करोड़ टन खाद्य पदार्थ रखने की है। यह आंकड़ा देश में उत्पादित होने वाले कुल खाद्य पदार्थों का महज 11 फीसद है। इनके संचालन के लिए प्रशिक्षित कर्मियों की कमी, कोल्ड स्टोरेज की अप्रचलित तकनीकें और अनियमित बिजली सप्लाई के चलते ये देश में कारगर नहीं हो रही हैं।
दक्षिण भारत में खराब स्थिति इस बर्बादी में 60 फीसद हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और पंजाब की है, लेकिन दक्षिण भारत में हालात बेहद खराब हैं। यहां का मौसम उत्तर भारत की तुलना में गर्म और उमस भरा है। यही वजह है कि कोल्ड स्टोरेज यूनिट्स की कमी की वजह से यहां दूध, फल व सब्जियां ज्यादा बर्बाद होती हैं।
खाने की बर्बादी मुख्य वजह
खाने की बर्बादी भुखमरी का एक अहम कारण है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 40 फीसद खाना बर्बाद हो जाता है। इन्हीं आंकड़ों में कहा गया है कि यह उतना खाना होता है जिसे पैसों में आंके तो यह 50 हजार करोड़ के आसपास पहुंचेगा। आंकड़ों पर न भी जाएं, तो भी हम रोजाना अपने आस-पास ढेर सारा खाना बर्बाद होते हुए देखते ही हैं। शादी, होटल, पारिवारिक और सामाजिक कार्यक्रमों, यहां तक की घरों में भी कितना खाना यू हीं फेंक दिया जाता है, अगर ये खाना बचा लिया जाए और जरूरतमंदों तक पहुंचा दिया जाए तो कई लोगों का पेट भर सकता है।
खाने की बर्बादी भुखमरी का एक अहम कारण है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 40 फीसद खाना बर्बाद हो जाता है। इन्हीं आंकड़ों में कहा गया है कि यह उतना खाना होता है जिसे पैसों में आंके तो यह 50 हजार करोड़ के आसपास पहुंचेगा। आंकड़ों पर न भी जाएं, तो भी हम रोजाना अपने आस-पास ढेर सारा खाना बर्बाद होते हुए देखते ही हैं। शादी, होटल, पारिवारिक और सामाजिक कार्यक्रमों, यहां तक की घरों में भी कितना खाना यू हीं फेंक दिया जाता है, अगर ये खाना बचा लिया जाए और जरूरतमंदों तक पहुंचा दिया जाए तो कई लोगों का पेट भर सकता है।
जरूरतमंदों की पहुंच से बाहर खाना
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में खाने का पर्याप्त उत्पादन होता है, लेकिन ये खाना हर जरूरतमंद तक नहीं पहुंच पाता। भूख से पीड़ित दुनिया की 25 फीसदी आबादी भारत में रहती है। भारत में करीब साढ़े 19 करोड़ लोग कुपोषित हैं। इसमें वो लोग भी हैं जिन्हें खाना नहीं मिल पाता और वो लोग भी हैं जिनके खाने में पोषण की कमी होती है। खाने की बर्बादी रोकने के लिए हर इंसान को व्यक्तिगत रूप से जागरुक होने की जरूरत है। जितना खाना है उतना ही लें। अगर घर में खाना बच जाता है तो अपने आस-पास किसी जरूरतमंद को दें।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में खाने का पर्याप्त उत्पादन होता है, लेकिन ये खाना हर जरूरतमंद तक नहीं पहुंच पाता। भूख से पीड़ित दुनिया की 25 फीसदी आबादी भारत में रहती है। भारत में करीब साढ़े 19 करोड़ लोग कुपोषित हैं। इसमें वो लोग भी हैं जिन्हें खाना नहीं मिल पाता और वो लोग भी हैं जिनके खाने में पोषण की कमी होती है। खाने की बर्बादी रोकने के लिए हर इंसान को व्यक्तिगत रूप से जागरुक होने की जरूरत है। जितना खाना है उतना ही लें। अगर घर में खाना बच जाता है तो अपने आस-पास किसी जरूरतमंद को दें।
बेहतर तकनीक की दरकार
देश में 2014 में किराना व्यापार 500 अरब डॉलर का था। 2020 तक इसके 847.9 अरब डॉलर होने की संभावना है। ऐसे में जरूरी है कि इस उद्योग में खाद्य पदार्थों को एकत्र करने, स्टोर करने और एक से दूसरी जगह भेजने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए। तभी यह विक्रेताओं और खरीदारों के लिए किफायती होगा।
क्या है कोल्ड स्टोरेज यूनिटऐसे खाद्य पदार्थ जो सामान्य तापमान में अधिक दिनों तक ताजे नहीं रह पाते हैं, उन्हें कई दिनों- महीनों तक ताजा रखने के लिए विशालकाय कमरों में कई डिग्री कम तापमान में स्टोर किया जाता है। इसे कोल्ड स्टोरेज कहते हैं।
ये बैंक हैं अनोखे
वंचित वर्ग की भूख शांत करने के लिए देश के कई शहरों में रोटी बैंकों की श्रंखलाएं खुल गई हैं। हमारे देश में तो 'भूखे पेट भजन न होय गोपाला' जैसी कहावतें हैं। जब इंसान भूखा होता है तो वह भगवान में भी ध्यान नहीं लगा पाता, फिर वह देश और समाज के लिए योगदान दे इसकी तो उम्मीद करना ही बेइमानी है। इस मामले में रोटी बैंकों की भूमिका खास है। यह रोटी बैंट समाज के एक बड़े वंचित वर्ग का पेट भरने के लिए खासी मेहनत करते हैं।
वंचित वर्ग की भूख शांत करने के लिए देश के कई शहरों में रोटी बैंकों की श्रंखलाएं खुल गई हैं। हमारे देश में तो 'भूखे पेट भजन न होय गोपाला' जैसी कहावतें हैं। जब इंसान भूखा होता है तो वह भगवान में भी ध्यान नहीं लगा पाता, फिर वह देश और समाज के लिए योगदान दे इसकी तो उम्मीद करना ही बेइमानी है। इस मामले में रोटी बैंकों की भूमिका खास है। यह रोटी बैंट समाज के एक बड़े वंचित वर्ग का पेट भरने के लिए खासी मेहनत करते हैं।
कैसे काम करते हैं रोटी बैंक
देश के अलग-अलग हिस्सों में रोटी बैंकों की श्रंखलाएं चल रही है। वैसे बता दें कि ज्यादातर रोटी बैंक आपस में जुड़े हुए भी नहीं हैं। यह अलग-अलग लोगों की व्यक्तिगत पहल का नतीजा हैं। लेकिन इन लोगों की समाज के प्रति एक जैसी सोच का नतीजा यह है कि बहुत से लोगों को अब भूखे पेट नहीं रहना पड़ता। यह रोटी बैंक समाज के उस वर्ग से रोटी और सब्जी इकट्ठा करते हैं, जो सक्षम हैं। इसके बाद वंचित वर्ग के लोगों तक रोटी पहुंचाई जाती है, ताकि उन्हें भी कुछ पोषण मिल सके और भूखे पेट न सोना पड़े। इस बारे में Jagran.Com ने दक्षिण दिल्ली में रोटी बैंक चलाने वाली अमित कौर पुरी से बात की।
अमित कौर पुरी ने बताया कि कैसे उन्होंने कुछ वंचित वर्ग के बच्चों को कूड़े में से खाने की चीजें बीनकर खाते हुए देखा और उनको रोटी बैंक बनाने का आइडिया आया। वह याद करते हुए बताती हैं कि शुरुआत में तो उन्होंने खुद से ही घर में रोटियां बनाकर लोगों में बांटनी शुरू की थीं। उन्होंने बताया कि वह एक पैकेट में दो रोटी, सूखी सब्जी या आचार डाल देती थीं। वह बताती हैं कि उन्होंने अपने क्षेत्र में ऐसे इलाकों तक रोटी के पैकेट पहुंचाए, जहां गरीबी के कारण लोग भूखे रह जाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वह अस्पतालों के आसपास भी गरीब मरीजों के तामीरदारों तक रोटी पहुंचाती हैं।
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