Thursday, 5 October 2017

बिहार का ये गांव है अनोखा, जहां लोग खाते हैं भारत में और पानी पीते हैं नेपाल में

 एक तरफ जहां भारत नेपाल सीमा पर आए दिन तस्कर समेत अवैध सामान को एसएसबी लगातार जब्त कर रही है। वहीं मधुबनी के अकोउन्हा गांव के लोगों का घर आंगन ही नो मेंस लैंड पर है। लोग अपने रोजमर्रा के कई काम नो मेंस लैंड में करते हैं। यह स्थिति आज से नहीं बल्कि 60 सालों से चली आ रही है।

जयनगर स्थित एसएसबी 48 मुख्यालय व जयनगर मुख्यालय से करीब एक किमी की दूरी पर अकोउन्हा बॉर्डर है। नो मेंस लैंड से बिल्कुल सटे यहां करीब 125 परिवार रह रहे हैं। डेढ़ दर्जन घर नो मेंस लैंड के अधीन है।नो मेंस लैंड के मध्य एक पिलर (संख्या 271-11) है। पिलर पर एक ओर भारत और दूसरी ओर नेपाल लिखा है।
पिलर के दोनों तरफ 20-20 मीटर दूरी तक नो मेंस लैंड है। पिलर से 10 कदम पर नो मेंस लैंड में नेपाल की ओर एक चापाकल है। नो मेंस लैंड पर रहने वाले अधिकतर परिवार खाना भारत में खाते हैं और पानी पीने के लिए नेपाल में जाते हैं।

आलम यह है कि यहां के लोग पालतू पशुओं को भारत नेपाल के पिलर में ही बांधते हैं।
खूंटा में बंधा जानवर घूमकर कभी नेपाली क्षेत्र की ओर जाता है तो कभी भारती क्षेत्र में। चारा खाने के लिए नाद भी पिलर के पास रहता है। जगह नहीं होने के कारण बैल गाड़ी भी नो मेंस लैंड में ही रखते है। जिसका एक छोर भारतीय व दूसरा छोर नेपाल की तरफ होता है।
शादी, ब्याह, मुंडन संस्कार जैसी कार्यक्रम का आयोजन भी लोग नो मेंस लैंड में कर लेते हैं। गांव की सड़क नो मेंस लैंड से होकर गुजरती है। इसके किनारे कई लोगों के घर है। पूरे दिन लोगों का आना जाना लगा रहता है। यहां सभी लोग भारतीय हैं, इनके बच्चे भारतीय क्षेत्र के स्कूल में पढ़ते हैं।

बच्चे नो मेंस लैंड को खेल का मैदान मानकर खेलते हैं। ऐसी बात नहीं है कि एसएसबी के जवान यहां गश्त नहीं करते हैं। एसएसबी के जवान नियमानुसार यहां गश्त करते हैं।
जयनगर स्थित एसएसबी 48वां बटालियन के कमांडेंट नंदन सिंह बिष्ट ने बताया कि अकोउन्हा बॉर्डर पर यह समस्या दशकों से है। यह दोनों देश का मामला है। इसकी जानकारी वरीय पदाधिकारी के संज्ञान में है।

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