दोस्तों आज भारत मे शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां पारले जी बिस्किट नही आता होगा, आप में से बहुत से लोग ऐसे भी होंगे, जिनकी चाय पारले जी बिस्किट में बिना अधूरी है, बेहद ही स्वादिष्ट और सस्ता यह बिस्किट पूरी दुनिया लोकप्रिय है। पारले जी समाज का हर वर्ग चाहे व गरीब हो या अमीर चाहे बच्चा हो या बूढ़ा हर कोई खाता है, ओर हा आप सभी ने भी यह बिस्किट तो खाया ही होगा, आखिर बचपन मे यही बिस्किट तो मिलता था। आज आपके पास बहुत अलग-अलग बिस्किट के ऑप्शन उपलब्ध है, लेकिन बचपन की उन यादों को भुलाया तो नहीं जा सकता।
आइये जानते हैं, पारले जी की शुरुआत कैसे ओर कब हुई।
जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था, 1929 में विले पारले मुम्बई नाम की एक छोटी कंपनी का निर्माण हुआ था। जहाँ मुख्यता टॉफियों का उत्पादन किया जाता था, फिर करीब दस सालों बाद कंपनी ने बिस्किट का उत्पादन करना भी शुरू कर दिया। इसकी अच्छी क्विलिटी और सस्ते ब्रांड की वजह से कंपनी बहुत ही जल्द प्रसीद होने लगी। उस पारले बिस्किट के इस बिस्किट का नाम पारले ग्लूको था। अगले कुछ सालों बाद 1947 में भारत भी आजाद हो गया। जिसके बाद पारले जी ने एक शानदार एड कैंपेन चलाई जिसमें बताया गया, कि भारत का यह बिस्किट अंग्रेजों के बिस्किट का अल्टरनेटिव है, इस केम्पेन ने लोगो के दिलो दिमाग पर एक जबरदस्त शाप छोड़ी। क्योंकि उस समय देश भक्ति सभी के दिलों में दौड़ रही थी। और पारले जी फिर सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्किट बन गया।
1980 तक इस बिलकुल को पारले ग्लूको बुलाया गया, लेकिन इसे बाद में बदलकर पारले जी का नाम दे दिया गया। हाँ पहले 'G' का मतलब ग्लूको था, बाद में उसी 'G' का मतलब जिनियस बन गया। इस बिस्किट को देखते ही पहचाना जा सकता है, इसके अलावा पैकेज पर छपी छोटी बच्ची भी इस बिस्किट की पहचान बन चुकी है। 2003 में पारले जी पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्किट था। भारत मे ग्लूको बिस्किट ट्रेड में पारले जी का 70% का कब्जा है। आज के समय मे यह पाँच रुपये से पच्चास रुपये के पैकेज में उपलब्ध है, लेकिन आज भी सबसे ज्यादा बिकने वाला पैकेज पाँच रुपये वाला ही है। दोस्तों सबसे अलग बात बताऊ तो आप जब इस पोस्ट को पढ़ रहे होंगे तो करीब चार हजार से ज्यादा लोग पारले जी खा रहे होंगे।
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