शिव त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। तस्वीरों में जानिए शिव के इस स्वरूप को।
तीसरी आंख
शिव की जो तस्वीर हमारे मस्तिष्क में अंकित है उसमें शिव को तीन नेत्रों वाला दिखाया गया है। माना गया है कि मनुष्य की दो आँखें सांसारिक वस्तुओं को दर्शाता है। वहीं शिव की तीसरी नेत्र सांसारिक वस्तुओं से परे संसार को देखने का बोध कराती है। यह एक दृष्टि का बोध कराती है जो पाँचों इंद्रियों से परे है। इसलिये शिव को त्रयंबक कहा गया है।
सर्प है कुंडलिनी
योग में सर्प को कुंडलिनी का प्रतीक माना गया है। इस अंदरूनी उर्जा का दर्ज़ा हासिल है जिसका प्रयोग अब तक नहीं हुआ है। कुंडलिनी के स्वभाव के कारण ही उसके अस्तित्व का पता नहीं चल पाता। इंसान के गले के गड्ढ़े में विशुद्धि चक्र होता है जो बाहर के हानिकारक प्रभावों से आपके शरीर को बचाता है। साँप में जहर होता है और विशुद्धि चक्र को छलनी की संज्ञा दी गयी है।
जीवन के तीन पहलुओं का प्रतिबिंब है त्रिशूल
शिव का त्रिशूल मानव शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियों बायीं, दाहिनी और मध्य का प्रतिबिंब है। इनसे 72,000 नाड़ियाँ निकलती हैं। सजगता की स्थिति में यह बात महसूस की जा सकती है कि उर्जा की गति अनियमित न होकर निर्धारित पथों यानी 72,000 नाड़ियों से होकर गुजर रही है।
नंदी है सजगता के साथ प्रतीक्षा का प्रतीक
प्रतीक्षा ग्रहणशीलता का मूल तत्व है और नंदी को इसका प्रतीक माना गया है। नंदी में ग्रहणशीलता के गुण है और वो शिव के करीब हैं। नंदी को सक्रिय और सजग माना गया है जो सुस्त नहीं हैं और जिनके अदंर जीवन है। भारतीय संस्कृति में योग भी सक्रियता का उद्यम माना गया है।
सोम का अर्थ केवल चंद्रमा नहीं
भगवान शिव को सोम भी कहा गया है सोम का पर्याय नशा भी होता है। नशे में रहने के लिये केवल मय या अन्य भौतिक वस्तुओं की जरूरत नहीं होती। इंसान अपने जीवन में मदमस्त होकर भी नशे में रह सकता है। नशे का आनंद उठाने के लिये सचेतावस्था में रहना आवश्यक है। वहीं, चंद्रमा को भी सोम कहा गया है जिसे नशे का स्रोत माना गया है। भगवान शिव चंद्रमा को आभूषण की तरह पहनते है। चंद्र धारण करने वाले शिव अपने जीवन में योगी की तरह मस्त रहते हैं जो जीवन का आनंद तो उठाता है लेकिन किसी क्षणिक आनंद को स्वयं पर हावी नहीं होने देता।
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