आज आपको भारत में ऐसे ऐसे मंदिर मिल जाएंगे जो हजारों साल पुराने हैं. कई मंदिर तो बेहद ही रहस्यमई है और इस सवाल का जवाब किसी के पास भी नहीं है कि उन्हें बनाया कैसे गया. कुछ मंदिर तो ऐसे भी हैं जब आर्किटेक्चर का विशाल नमूना है जिन्होंने वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल दिया है. इन मंदिरों ने वैज्ञानिकों को यह मानने पर मजबूर कर दिया है कि प्राचीन विज्ञान भी आधुनिक विज्ञान से अत्यधिक प्रगतिशील तथा आगे थी.
आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे शिव मंदिर की जिसे लगभग 1000 साल पहले बनाया गया था और आज भी ऐसा कुछ दोबारा बनाया नहीं जा सकता है. हम बात कर रहे है बृहदेशर मंदिर के बारे में जोकि स्थित है तंजावुर तमिल नाडु में. इस मंदिर के निर्माण कुशलता ने तो बड़े-बड़े आर्किटेक्चर को भी चकरा कर रख दिया है. यह मंदिर 10 वीं सदी में बनाया गया था और उसे बनाया गया था राजा राजा चोला के द्वारा. इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 60 m है और इसे दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर के सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि इसे ग्रेफाइट पत्थरों को काटकर बनाया गया है.
ग्रेफाइट पत्थर बहुत अधिक सख्त पत्थर होते हैं. इस तरह के लगभग 60 किलोमीटर के दायरे में कोई भी ऐसी चट्टान नहीं है जहां से यह पत्थर लाए जा सकें. इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य है मंदिर की चोटी पर रखा पत्थर जिसका वजन 80000 किलो है और इसे कुंभ बम कहा जाता है. वैज्ञानिक आज इस बात पर माथापच्ची कर रहे हैं कि इतना बड़ा पत्थर इतनी उचाई पर बिना किसी आधुनिक तकनीक के कैसे पहुंचाया गया होगा. एक नई थ्योरी के अनुसार लगभग 6 किलोमीटर लंबा मिट्टी का रैंप बनाना गया होगा. तब जाकर यह इस मंदिर की चोटी पर रखा गया होगा.
इस मंदिर के आर्किटेक्चर का कमाल है यहीं खत्म नहीं होता. इससे भी हैरान करने वाले बात तो यह है कि इस मंदिर को बनाने में किसी भी प्रकार के जोड़ने वाले मिश्रण का इस्तेमाल नहीं किया गया यानी बिना सीमेंट और कुछ भी. इन पत्थरों के ब्लॉक्स को ही इस तरह काटा गया ताकि वह एक दूसरे के बीच फिट हो सके. आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि इस मंदिर की कोई भी निव नहीं है यानी इसे खोद कर नीचे से नहीं बनाया गया. बल्कि इसे एक सपाट मैदान पर बनाया गया है.
पिछले 8 सबसे बड़े भूकंप भी इसमें कोई दरार नहीं ला सके. आज पश्चिमी देशों में बनी इमारतें कुछ सालों में ही टेढ़ी होती जा रही है जिसका सीधा-सीधा उदाहरण पीसा की बिल्डिंग है. फिर भी यह शिव मंदिर आज भी वैसा का वैसा जैसा यह 1000 साल पहले था. यह मंदिर सबूत हैं भारत के प्राचीन तथा अत्याधुनिक क्षमता का जिसे भारत से ही लूटा गया और जिसे दूसरे देशों द्वारा अपनाया जा रहा है. भले ही आप पश्चिम देशों के विज्ञान को विकसित मानते हैं लेकिन यह सबूत आज भी गवाही दे रहे हैं कि हमारी प्राचीन विज्ञान अति विकसित थी.
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