बीकानेर। भुजिया और रसगुल्लों के लिए मशहूर राजस्थान का सीमावर्ती शहर बीकानेर सैंकड़ों साल की सांस्कृतिक विरासत को संभाले हुए हैं। करीब 528 साल पहले अक्षय द्वितीया को राव बीकाजी द्वारा बसाए गए इस रंगीले शहर की स्थापना की कहानी भी कम रोचक नहीं है।
राव बीकाजी जोधपुर रियासत के राजकुमार थे। एक दिन किसी काम के लिए जल्दी करने के कारण राव जोधा ने राव बीका को ताना मारा। बस यही बात उनके दिल में बैठ गई और उसी वक्त राव बीकाजी जोधपुर से अपना काफिला लेकर जांगल प्रदेश की और रवाना हो गए। उस समय बीकानेर नाम की कोई रियासत नहीं थी। जहां आज बीकानेर बसा हुआ है वह जांगल प्रदेश का हिस्सा भर था और यहाँ भाटियों की हुकूमत थी।जब राव बीकाजी वहां पहुंचे तो उनका सामना उस समय के एक जागीरदार से हुआ, जिसका नाम नेर था। उसने ये शर्त रख दी कि नए शहर के नाम में उसका जिक्र भी आना चाहिए और राव बीका और नेर के नामों को मिलाकर बीकानेर नाम का नया शहर बसाया गया।
महाराजा गंगासिंह आधुनिक बीकानेर के निर्माता:-
इस शहर पर शुरू से ही राजपूत राजाओं की हुकूमत रही लेकिन, उन सब में महाराजा गंगा सिंह का नाम आज भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है। महाराजा गंगा सिंह जहां कुशल शासक के रूप में अपनी पहचान रखते थे, वहीं समय से आगे सोचने की योग्यता भी रखते थे। यही कारण था की अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान उनकी पहुंच महारानी विक्टोरिया तक थी और विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें ब्रिटिश-भारतीय सेनाओं के कमान्डर-इन-चीफ की जिम्मेदारी सौंपी गई। गंगा सिंह के समय में बीकानेर एक विकसित रियासत था और जो सुविधाएं दूसरी रियासतों ने कभी देखी नहीं थीं, वे भी बीकानेर में आम लोगों को उपलब्ध थीं। बिजली, रेल, हवाई जहाज और टेलीफोन की उपलब्धता करवाने वाली रियासत बीकानेर ही थी। यहां का पीबीएम अस्पताल देश के बेहतरीन अस्पतालों में शुमार होता था।
आजादी के बाद पिछड़ता चला गया:-
आजादी के बाद बीकानेर से सभी सरकारों ने सौतेला व्यवहार किया और विकास के नाम पर बीकानेर दूसरे सभी शहरों से पीछे रह गया। बीकानेर का रेलवे वर्कशॉप किसी जमाने में जहां 17000 कर्मचारियों की क्षमता रखता था, वहां अब 1000 कर्मचारी भी नहीं बचे हैं।पर्यटन की भरपूर सम्भावनाएं होते हुए भी सरकार ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। जिसका नतीजा यह है की निजी स्तर पर किए जाने वाले प्रयासों से ही दुनिया बीकानेर को देख पाती है।
उस्ता कला ने दिया नाम:-
पूरी दुनिया को रसगुल्ले की मिठास और भुजिया-पापड़ के चटखारों का एहसास करवाने वाला बीकानेर की उस्ता कला पूरी दुनिया में विख्यात है।ऊंट की खाल पर की जाने वाली चित्रकारी हो या पत्थरों पर खूबसूरत नक्काशी, पूरी दुनिया यहां के कलाकारों के सामने नतमस्तक होती है। स्व. हाजी जहूरदीन उस्ता, स्व. अलादीन उस्ता और मुहम्मद हनीफ उस्ता ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपना हुनर दुनिया से मनवाया है।
अल्लाह जिलाई बाई के मांड से हुआ रोशन:-
संगीत के क्षेत्र की बात करें तो विश्व प्रसिद्ध मांड गायिका अल्लाह जिलाई बाई ने मांड को दुनिया में स्थापित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत की सरकार ने उन्हें सलाम करते हुए पद्मश्री के सम्मान से नवाजा। संगीत की इस विरासत को आगे बढ़ाने में भी बहुत से नाम हैं। जिनमें पाकीजा फिल्म के संगीतकार गुलाम मुहम्मद और हालिया नौजवान गायक राजा हसन प्रमुख हैं। पंडित भारत व्यास ने गीतकार के रूप में अपनी खास पहचान बनाकर बीकानेर को गौरवान्वित किया
साहित्य का सूर्य भी चमका:-
साहित्य का क्षेत्र तो बीकानेर के लोगों को सलाम करता नजर आता है। उर्दू हो या हिंदी या फिर राजस्थानी। बीकानेर के साहित्यकारों का लम्बा सिलसिला है। हिंदी की बात करें तो स्व. हरीश भादाणी, यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र, नन्द किशोर आचार्य, भवानी शंकर शर्मा विनोद, डॉ. बुलाकी शर्मा और भी न जाने कितने नाम हैं, जिन्होंने हिंदी भाषा को समृद्ध करने में अपना योगदान दिया है। स्व. मुहम्मद उस्मान आरिफ, दीवान चन्द दीवां, मुहम्मद हनीफ शमीम, स्व. गाजी बीकानेरी, रासिख और न जाने कितने ऐसे अदीब हैं, जिन्होंने अपनी कलम के जरिए उर्दू अदब की शमा जलाकर बीकानेर का नाम रोशन किया है।
मजहबी एकता का पैगाम:-
तहजीब के मामले में बीकानेर सबसे हटकर है। यहां इन्सानियत सबके लिए सबसे बड़ा मजहब है। कोटगेट पर बनी हजरत हाजी बलवान शाह पीर की दरगाह पर हाजरी देने से पहले यहां के लोग अपनी दुकानें नहीं खोलते। बाद फिर से हाजरी होती है। इनमें से नब्बे फीसदी लोग अन्य धर्मों को मानने वाले हैं। वहीं लक्ष्मीनाथजी का मंदिर हो या नागणेचेजी का मंदिर हो। फूल बेचने वाले सभी लोग मुस्लिम हैं। यहां के मोहल्ले भी आपस में एक-दूसरे से लगे हुए हैं। जहां दोनों मजहबों के लोग साथ बैठकर मोहब्बत के नगमे गाते नजर आते हैं। किसी के रास्ता पूछ लेने पर साथ जाकर बताकर आना यहां के लोगों की आदत में शामिल है। अयोध्या आन्दोलन के दौरान देश भर में दंगे हो जाने पर भी यहां के लोग साथ बैठकर एक दूसरे के यहां खा-पी रहे थे। भूतपूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने यहां का भाईचारा देखकर कहा था कि काश पूरा देश बीकानेर हो जाता।
अक्षय द्वितीया को मनाते हैं स्थापना दिवस:-
ऐसा निराला शहर बीकानेर अक्षय द्वितीया को अपना स्थापना दिवस मनाता है और अक्षय तृतीया के दिन भी पतंगबाजी कर शहर के स्थापक राव बीकाजी को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। अक्षय द्वितीया के दिन जहां जगह-जगह आयोजन होते हैं, वहीं अक्षय तृतीया को पूरा शहर अपनी अपनी छतों पर चढ़ जाता है और शुरू होता है पतंगबाजी का दौर। इस दिन शहर में हजारों शादियां होती हैं और पतंगबाजी के बाद लोग शादियों की दावतों का लुत्फ भी लेते हैं। किसी जमाने में यह दिन बाल विवाह के लिए जाना जाता था लेकिन, बीकानेर अब इस कुप्रथा को छोड़ 21वीं सदी में दाखिल हो चुका है।
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