बचपन की एक छोटी सी याद भी कई बार लोगों के लिए बड़े काम की साबित हो जाती है। 1944 में यूरोप के एस्टोनिया में रहने वाले एक छोटे से बच्चे ने अपने घर से थोड़ी दूर बनी झील से कुछ बुलबुले निकलते देखे थे। उस समय उसने इस बात को इग्नोर कर दिया था। लेकिन इस घटना के 50 साल बाद उसे वो चीज याद आई और उसने एक अनोखी खोज कर डाली। बचपन की कहानी की थी शेयर...
इस बच्चे ने बचपन में एस्टोनिया के कुर्तना मटास्जर्व झील के बीचोंबीच बुलबुले निकलते देखे थे। इस घटना ने उसके जेहन में गहरी छाप छोड़ी थी। हालांकि, वो समझ नहीं पाया था कि वहां क्या है। लेकिन इसके 50 साल बाद, उसे ये घटना याद आई और उसने अपने सोशल अकाउंट पर इसका जिक्र किया। उसकी कहानी ने कुछ वॉर हिस्ट्री में इन्ट्रेस्ट रखने वालों का ध्यान खींचा। इन्वेस्टिगेशन टीम के साथ ये शख्स दुबारा उसी झील के पास पहुंचा। करीब आठ घंटे के बाद झील के अंदर से कुछ ऐसा निकाला गया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। झील के अंदर सेकंड वर्ल्ड वॉर का एक लड़ाकू टैंक डूबा हुआ था। अगर इस शख्स ने अपने बचपन की उस याद को भुला दिया होता, तो इसे कभी खोजा नहीं जा सकता था।
इतनी तैयारी के साथ पहुंची थी टीम
इन्वेस्टिगेशन के लिए पहुंची टीम पूरी तैयारी के साथ वहां पहुंची थी। उन्होंने स्टील केबल्स को झील के तीन मीटर नीचे तक डाला था। टीम एक बुल्डोजर भी लेकर आई थी। अब टीम को डर इस बात का था कि इतनी तैयारी के बाद अगर झील से कुछ नहीं निकला तो क्या होगा? ]
इस बच्चे ने बचपन में एस्टोनिया के कुर्तना मटास्जर्व झील के बीचोंबीच बुलबुले निकलते देखे थे। इस घटना ने उसके जेहन में गहरी छाप छोड़ी थी। हालांकि, वो समझ नहीं पाया था कि वहां क्या है। लेकिन इसके 50 साल बाद, उसे ये घटना याद आई और उसने अपने सोशल अकाउंट पर इसका जिक्र किया। उसकी कहानी ने कुछ वॉर हिस्ट्री में इन्ट्रेस्ट रखने वालों का ध्यान खींचा। इन्वेस्टिगेशन टीम के साथ ये शख्स दुबारा उसी झील के पास पहुंचा। करीब आठ घंटे के बाद झील के अंदर से कुछ ऐसा निकाला गया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। झील के अंदर सेकंड वर्ल्ड वॉर का एक लड़ाकू टैंक डूबा हुआ था। अगर इस शख्स ने अपने बचपन की उस याद को भुला दिया होता, तो इसे कभी खोजा नहीं जा सकता था।
इतनी तैयारी के साथ पहुंची थी टीम
इन्वेस्टिगेशन के लिए पहुंची टीम पूरी तैयारी के साथ वहां पहुंची थी। उन्होंने स्टील केबल्स को झील के तीन मीटर नीचे तक डाला था। टीम एक बुल्डोजर भी लेकर आई थी। अब टीम को डर इस बात का था कि इतनी तैयारी के बाद अगर झील से कुछ नहीं निकला तो क्या होगा? ]
कीचड़ से सना टैंक आया बाहर
टीम ने सुबह के 9 बजे से ही पानी में खोज शुरू कर दी। आठ घंटे तक उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। टीम का उत्साह कम पड़ता जा रहा था। लेकिन तभी उन्हें महसूस हुआ कि उनकी मेहनत बेकार नहीं गई। कीचड़ से सनी एक भारी चीज जब बाहर निकली तो टीम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जल्द ही उन्हें अहसास हुआ कि ये वर्ल्ड वॉर 2 में इस्तेमाल हुआ एक लड़ाकू टैंक है।
टीम ने सुबह के 9 बजे से ही पानी में खोज शुरू कर दी। आठ घंटे तक उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। टीम का उत्साह कम पड़ता जा रहा था। लेकिन तभी उन्हें महसूस हुआ कि उनकी मेहनत बेकार नहीं गई। कीचड़ से सनी एक भारी चीज जब बाहर निकली तो टीम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जल्द ही उन्हें अहसास हुआ कि ये वर्ल्ड वॉर 2 में इस्तेमाल हुआ एक लड़ाकू टैंक है।
तब भी काम कर रहा था इंजन
ये लड़ाकू टैंक रूस में बना था और इसे जर्मन आर्मी द्वारा यूज किया गया था। इसका वजन 30 टन से ज्यादा था। जब इसे बाहर निकालकर चेक किया गया तो टीम ने पाया कि इसके इंजन अभी भी काम कर रहे थे। इसे बाद में मिलिट्री म्यूजियम में रख दिया गया।
ये लड़ाकू टैंक रूस में बना था और इसे जर्मन आर्मी द्वारा यूज किया गया था। इसका वजन 30 टन से ज्यादा था। जब इसे बाहर निकालकर चेक किया गया तो टीम ने पाया कि इसके इंजन अभी भी काम कर रहे थे। इसे बाद में मिलिट्री म्यूजियम में रख दिया गया।
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