Monday, 23 October 2017

मिट्टी के घर से IIT मुंबई तक का सफर: जी हां! उड़ान पंख नहीं, हौसले से होती है

कहते हैं कि उड़ान के लिए सिर्फ पंख नहीं, हौसला भी चाहिए। यह एक युवक की ऐसी ही कहानी है, जिसने मिट्टी के घर से आइआइटी तक का सफर तय किया है

यह कहानी है आइआइटियन अनूप राज की। लाखों गुदड़ी के लालों को समर्पित, जो कामयाबी का आसमां छूने की ख्वाहिश और कूबत तो रखते हैं, पर गांवों में प्रारंभिक शिक्षा की बदहाली, साधनहीनता, मार्गदर्शन के अभाव और अंग्रेजी के आतंक के कारण सपने साकार करने का हौसला छोड़ देते हैं। घोर नक्सल प्रभावित एवं स्कूलविहीन गांव में जन्मे एक ऐसे बच्चे की मोहित कर देने वाली प्रेरक कहानी, जिसने 10 साल की उम्र तक स्कूल का मुंह नहीं देखा, पर अगले आठ सालों में जिसने शिक्षा के लिए जुनून से अपना प्रारब्ध बदलकर रख दिया।

जुनून ने साकार किया सपना

आइआइटी मुंबई से 2014 में सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री पाने के बाद अनूप राज ने सिर्फ छह महीने एक बड़ी कंपनी में नौकरी की। अब नौकरी छोड़कर मुंबई में ही तीन इंजीनियर दोस्तों के साथ मेडिकल केयर स्टार्ट-अप पीएस टेककेयर चला रहे इस जुनूनी युवा की विस्मित कर देने वाली सक्सेस स्टोरी के दो सिरे महसूस करने के लिए इन दोनों तस्वीरों पर गौर करिए।

पहली, गांव के अपने पुश्तैनी मकान में मां के साथ खड़े अनूप। दूसरी, केबीसी के मौजूदा एडीशन में पटना की सुपर-30 कोचिंग के संस्थापक आनंद कुमार के बाईं ओर बैठे अनूप। वास्तव में यह सिर्फ अनूप राज की कामयाबी की कहानी नहीं है। यह जिंदगी के कठोरतम इम्तिहानों से गुजरकर एक मां का अपने बेटे के लिए बुना सपना साकार होने की कहानी है जिसे उसने अपने असाधारण संघर्ष से बिखरने नहीं दिया। यह गणितज्ञ आनंद कुमार की तमाम गौरव-गाथाओं की प्रतिनिधि कहानी भी है जिस पर वह बेहद गर्व करते हैं और सुपर-30 के हर नए छात्र को जरूर सुनाते हैं।

संघर्ष और संकल्प ने तय की राह
औरंगाबाद (बिहार) जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर गांव चेंव। इसी गांव में कच्ची मिट्टी की दीवारों पर खपरैल की छत वाले झोपड़ीनुमा मकान में रामप्रवेश प्रसाद का 22 सदस्यीय संयुक्त परिवार रहता था। हर तरह के दुख-दरिद्रता की इंतिहा। खुद ग्रेजुएट रामप्रवेश अनूप को घर पर ही गणित और व्याकरण पढ़ाते थे क्योंकि गांव का स्कूल नक्सलियों ने बहुत पहले बंद करवा दिया था।

10 साल की उम्र में नजदीकी कस्बा रफीगंज के एक मिशनरी स्कूल में सीधे कक्षा पांच में दाखिले के साथ अनूप की शिक्षा का सफर क्रमश: 2009 में सुपर-30 और 2010 में आइआइटी में दाखिले के साथ परवान चढ़ा, पर एक-एक पैसे को मोहताज परिवार के सबसे छोटे सदस्य अनूप के ये आठ साल परिश्रम, अभाव, तकलीफ और दुख-दर्द की इंतिहा के साथ उसके धैर्य, संघर्ष और संकल्प के साक्षी भी बने।

खुद पढ़ाई करते हुए रफीगंज में ट्यूशन पढ़ाकर 250 रुपये महीने अर्जित करता था ताकि परिवार और पढ़ाई का खर्च चले। 2006 में एकमात्र सहारा पिताजी बिना कुछ कहे-बताए घर से चले गए तो आज तक नहीं लौटे। घोर संकट की घड़ी में संयुक्त परिवार ने भी किनारा कर लिया।

इन हालात में भी अनूप ने मैट्रिक परीक्षा 85 फीसद और इंटरमीडिएट परीक्षा 82 फीसद अंकों के साथ उत्तीर्ण की। शिक्षा की इसी किरण का सिरा थामकर मां-बेटा कहीं से जानकारी प्राप्त करके पटना में आनंद कुमार की सुपर-30 कोचिंग पहुंचे। अनूप ने प्रवेश परीक्षा दी और 2009 में उसे सुपर-30 के क्लासरूम में वह मसीहा मिला जिसने उसे उसकी मंजिल दिखाई। जी हां, गणितज्ञ आनंद कुमार। 

सुपर-30 में दाखिला अनूप की जिंदगी का टर्निंग पाइंट साबित हुआ। वर्ष 2010 में उसे आइआइटी मुंबई में सिविल इजीनियरिंग में दाखिला मिल गया। ग्रामीण पृष्ठभूमि के हिंदी मीडियम शिक्षित छात्र के लिए मुंबई आइआइटी के अंग्रेजीदां माहौल में खुद को ढालना कठिन चुनौती थी, लेकिन अनूप ने यह भी कर दिखाया। सिविल इंजीनियरिंग पढ़ते हुए अंग्रेजी सीखी। अब सब कुछ हासिल है। 

गांव में पक्का घर। मुबई में मजबूत कंपनी। बस दो ख्वाहिशें बाकी हैं। पहली, उसे इस मुकाम पर पहुंचाने वाली मां का अपनी पढ़ाई का ख्वाब पूरा कराना, जो पारिवारिक परिस्थितिवश तब नहीं पढ़ पाईं। दूसरी, आनंद सर का सपना पूरा करना कि गणित ओलंपियाड में अपने देश का कोई बच्चा पहला रैंक लाए। उसे भरोसा है कि बाकी की तरह ये दोनों सपने भी जल्द पूरे होंगे। 

मुझे बेहद संतुष्टि है कि समाज के अंतिम आर्थिक पायदान से आगे बढ़ा एक बच्चा अपनी मेधा और शिक्षा के बल पर आज तमाम युवाओं को न सिर्फ रोजगार दे रहा है बल्कि अपने जैसे बच्चों् को राह भी दिखा रहा है।
- आनंद कुमार, गणितज्ञ एवं सुपर-30 कोचिंग के संस्थापक 

बचपन से ही आर्थिक तंगी को बहुत करीब से देखा। एक समय ना खाकर किताब खरीद लेना आदत बन गई थी। अब कुछ ऐसा करने की ख्वाहिश है जिससे ऐसे हालात किसी अन्य छात्र-छात्रा की पढ़ाई में बाधा न बनें। युवा बहुत कुछ करना चाहते हैं, उन्हें मार्गदर्शन और मदद की जरूरत है। युवाओं के लिए अधिक से अधिक रोजगार पैदा करना और उन्हें गाइड करके उनकी अपनी कंपनी खड़ी करने में मदद करना इस साल शुरू किया है। 
- अनूप राज

About Author

0 comments:

Post a Comment

Popular Posts

Recent Posts

Unordered List

Text Widget

Blog Archive

Search This Blog

BTemplates.com