बिहार की एक बेटी ने दुनिया में फिर से राज्य का नाम रौशन किया है। सीतामढ़ी की रहनेवाली भारतीय मूल की महिला शिक्षाविद् को ब्रिटेन का प्रतिष्ठित एशियन बिजनेस वूमेन पुरस्कार दिया गया है। 65 वर्षीय आशा को शुक्रवार को यहां एक समारोह में सम्मानित किया गया।
इससे पहले बिहार के सीतामढ़ी में जन्मीं आशा वर्ष 2013 में ब्रिटेन के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'डेम कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर' का सम्मान भी पा चुकी हैं। इससे पूर्व भारतीय मूल की धार स्टेट की महारानी लक्ष्मी देवी बाई साहिबा को 1931 में डेम पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
नहीं आती थी अंग्रेजी
सीतामढ़ी की रहने वाली आशा खेमका का अंग्रेजी से कोई सरोकार नहीं रहा था। आशा खेमका की सफलता की कहानी भी काफी दिलचस्प है। शादी के बाद आशा जब ब्रिटेन गईं, तो उसे अंग्रेजी तक नहीं आती थी। लेकिन अाशा ने हार नहीं मानी और अंग्रेजी की पढ़ाई शुरु कर दी।
इसके बाद फिर क्या था खेमका ने जज्बे के दम पर अंग्रेजी को अपने वश में कर लिया।लेकिन उसने अपनी काबिलियत से अपना यह मुकाम तय किया है। 65वर्षीय आशा को शुक्रवार को यह पुरस्कार दिया गया है। आशा खेमका ब्रिटेन के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज की प्रिंसिपल हैं।
दिलचस्प रहा है सफलता का सफर
आशा 13 वर्ष की कम उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। 15 साल की उम्र में आशा की शादी डॉक्टर शंकर अग्रवाल से हो गयी। घर परिवार वालों ने उसकी शादी कर दी। शादी के बाद घर परिवार संभालते 25 की उम्र में वो ससुराल पहुंच गयी।
डॉक्टर पति ने इस बीच इंगलैंड में अपनी नौकरी पक्की कर ली थी। फिर वो अपने पति के पास अपने बच्चों के साथ ब्रिटेन पहुंचीं। अंग्रेजी का कोई ज्ञान नहीं होने के कारण उसे काफी परेशानी होती थी। तब आशा ने टीवी पर बच्चों के लिए आने वाले शो को देख अंग्रेजी सीखने शुरू किया।
आशा 13 वर्ष की कम उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। 15 साल की उम्र में आशा की शादी डॉक्टर शंकर अग्रवाल से हो गयी। घर परिवार वालों ने उसकी शादी कर दी। शादी के बाद घर परिवार संभालते 25 की उम्र में वो ससुराल पहुंच गयी।
डॉक्टर पति ने इस बीच इंगलैंड में अपनी नौकरी पक्की कर ली थी। फिर वो अपने पति के पास अपने बच्चों के साथ ब्रिटेन पहुंचीं। अंग्रेजी का कोई ज्ञान नहीं होने के कारण उसे काफी परेशानी होती थी। तब आशा ने टीवी पर बच्चों के लिए आने वाले शो को देख अंग्रेजी सीखने शुरू किया।
टूटी-फूटी अंग्रेजी से पाया अंग्रेजी पर फतह
शुरुआत में टूटी-फूटी अंग्रेजी में ही सही, साथी युवा महिलाओं से बात करती थीं। लेकिन वो इससे परेशान नहीं होती और फिर वो हर दिन आगे बढ़ती गयी। इससे उसका आत्मविश्र्वास बढ़ता गया।
फिर उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुछ सालों बाद कैड्रिफ विवि से बिजनेस मैनजमेंट की डिग्री ली और ब्रिटेन के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज में व्याख्याता के पद पर योगदान दिया। अब वो इसी कॉलेज की प्रिसिंपल हैं।
शुरुआत में टूटी-फूटी अंग्रेजी में ही सही, साथी युवा महिलाओं से बात करती थीं। लेकिन वो इससे परेशान नहीं होती और फिर वो हर दिन आगे बढ़ती गयी। इससे उसका आत्मविश्र्वास बढ़ता गया।
फिर उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुछ सालों बाद कैड्रिफ विवि से बिजनेस मैनजमेंट की डिग्री ली और ब्रिटेन के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में शुमार वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज में व्याख्याता के पद पर योगदान दिया। अब वो इसी कॉलेज की प्रिसिंपल हैं।
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