Saturday, 21 October 2017

जानलेवा मेला: यहां एक-दूसरे को मारते हैं पत्थर, खून बहने के बाद ही रुकते हैं लोग

पत्थर का ऐसा अजीब खेल, जब तक खून की धारा न बहने लगे तब तक पत्थरों की बारिश नहीं रुकती है। हिमाचल की राजधानी शिमला से करीब 30 किलोमीटर दूर धामी के हलोग में पत्थरों का एक ऐसा मेला होता है, जिसे देखकर हर कोई हैरान रह जाता है। कई वर्षों से यह परंपरा चल रही है। दिवाली के दूसरे दिन यह पत्थरों का मेला आयोजित किया जाता है। 

काली माता मंदिर में जाकर करते हैं खून से तिलक...
-शुक्रवार शाम करीब 4 बजे यह मेला शुरू हुआ। हजारों की संख्या में लोग हलोगधामी के खेल मैदान में एकत्रित हुए। फिर धामी रियासत के राजा जगदीप सिंह पूरे शाही अंदाज में मेले वाले स्थान पर पहुंचे
-इसके कुछ ही मिनटों के बाद दोनों तरफ से पत्थर बरसाने का सिलसिला शुरू हो गया।दोनों और से लगातार छोटे आैर बड़े पत्थर लगातार बरसाए गए।
-इस बीच जमोगी के खूंद प्रकाश को पत्थर लग गया। उससे खून निकलने लगा।करीब अाधे घंटे तक चले इस पत्थरबाजी का का सिलसिला यहीं थम गया।
-मेला कमेटी के आयोजकों के साथ राजवंश के सदस्यों ने मेला स्थल के नजदीक बने काली माता मंदिर में जाकर पूजा- अर्चना की। माता को खून का तिलक लगाया गया। उसके बाद मां काली का आशीर्वाद लिया।






चोट की परवाह नहीं, खून निकले यह सौभाग्य...
-इसमें कहीं किसी को चोट न लगे, यह नहीं सोचा जाता है, बल्कि मेले में शामिल लोग पत्थर लगने से खून निकले, इसे अपना सौभाग्य समझते हैं।
-इसलिए लोग मेले में पीछे रहने की बजाय आगे बढ़कर दूसरी तरफ के लोगों पर पत्थर फेंकने के लिए जुटे रहते हैं।
-धामी के पत्थर मेले को देखने के लिए दगोई, तुनड़ू, तुनसू, कटैड़ू ही नहीं बल्कि शिमला से भी लोग पहुंचे।
-मेले के लिए धामी के लोग खासतौर पर अपने घरों से पहुंचते हैं। पुराने समय में हर घर से एक व्यक्ति को मेले के लिए पहुंचना होता था





-अब हालांकि इसकी बाध्यता नहीं है, इसके बावजूद हजारों लोग यहां आते हैं।

नरबलि के बाद पशु बलि, अब पथराव
जानकारों का कहना है कि पहले यहां हर वर्ष नर बलि दी जाती थी।
एक बार रानी यहां सती हो गई। इसके बाद से नर बलि को बंद कर दिया।
इसके बाद पशु बलि शुरू हुई। कई दशक पहले इसे भी बंद कर दिया।


इसके बाद पत्थर का मेला शुरू किया गया। मेले में पत्थर से लगी चोट के बाद जब किसी व्यक्ति का खून निकलता है तो उसका तिलक मंदिर में लगाया जाता है।
हर साल दिवाली से अगले दिन ही इस मेले का आयोजन धामी के हलोग में किया जाता है



पत्थर मारने के लिए दो टोलियां ही मान्य
नियमों के मुताबिक एक राज परिवार की तरफ से तुनड़ू, तुनसू, दगोई और कटेड़ू परिवार की टोली और दूसरी तरफ से जमोगी खानदान की टोली के सदस्य ही पत्थर बरसाने के मेले भाग ले सकते हैं। बाकी लोग पत्थर मेले को देख सकते हैं, लेकिन वह पत्थर नहीं मार सकते हैं। खेल का चौराज् गांव में बने सती स्मारक के एक तरफ से जमोगी दूसरी तरफ से कटेड़ू समुदाय पथराव करता है। मेले की शुरुआत राजपरिवार के नरसिंह के पूजन के साथ होती है।



About Author

0 comments:

Post a Comment

Popular Posts

Recent Posts

Unordered List

Text Widget

Blog Archive

Search This Blog

BTemplates.com